कृष्णकांत
शाहरुख खान के नाना को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी. उनके लिए नेहरू ने दशकों बाद फिर से वकीलों वाला चोगा पहना था. उनके लिए, जिन्होंने इस देश के लिए कुर्बानियां दीं, उनकी पुश्तों के खिलाफ बिना वजह घृणा अभियान चलाओगे तो दुनिया में मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे. फिल्म देखो चाहे जहन्नुम जाओ, लेकिन यह मत करो.
सुभाष चंद्र बोस से जुड़े थे शाहरुख के नाना
शाहरुख ने नाना मेजर जनरल शाहनवाज खान नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज में कमांडर थे। जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ तो नेताजी का साथ देने वालों की धरपकड़ शुरु हुई। नेताजी जी की सेना के कई सिपाही पकड़े गए। उन्हीं में से तीन कमांडरों को फांसी की सजा सुनाई गई। ये तीनों थे- कर्नल प्रेम कुमार सहगल, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लन और मेजर जनरल शाहनवाज खान।
नेहरू ने की थी वकालत
इन तीनों क्रांतिकारियों को बचाने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू बड़े लंबे समय बाद कोर्ट में खड़े हुए थे और फांसी की सजा को चुनौती दी. नेहरू के साथ कांग्रेस के बड़े वकीलों की टीम थी. लालकिले में अदालत लगाकर मुकदमा चलाया गया. यह मुकदमा आगे बढ़ा तो तीनों क्रांतिकारियों के पक्ष में पूरे देश में लहर फैल गई.
पूरे देश में नारा उठा- “लाल किले से आई आवाज, सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज”
तीनों की फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल गई। कुछ वक्त बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.
खुद शाहरुख खान ने भी देश का नाम ही रोशन किया है. फिर उनके खिलाफ यह घृणा अभियान क्यों चल रहा है? जैसे मैं लिखता हूं, जैसे आप अपना काम करते हैं, जैसे देश के सारे पेशेवर अपना अपना काम करते हैं, वैसे ही शाहरुख अपना काम करते हैं. उन्होंने फिल्म बनाई है, कोई देखेगा कोई नहीं देखेगा. लेकिन उनके खिलाफ बायकाट ट्रेंड चलाने का क्या मतलब है? इसमें सत्ता में बैठे लोग क्यों शामिल हैं? उनकी पार्टी के लोग क्यों शामिल हैं? उन्हें कोई क्यों नहीं रोक रहा है? सिर्फ इसलिए कि शाहरुख मुसलमान है? इस देश में हिंदुओं को इतना घृणित मानसिकता वाला क्यों बनाया जा रहा है?
देश को अराजकता में धकेल रहा आरएसएस
आरएसएस के लोग इस देश को 1947 से पहले वाली उसी अराजकता में धकेल रहे हैं जिसमें कभी जिन्ना और हिंदू महासभा ने मिलकर धकेला था। वे सत्ता में हैं और समाज के प्रति अंग्रेजों की वही पुरानी क्रूरता अमल में ला रहे हैं। सत्ता में बैठे लोग चाहते हैं कि हिंदू मुस्लिम आपस में बंटे रहें और वे सत्ता में बने रहें।
जैसे सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज के लिए पूरे देश ने एकजुट होकर लड़ाई लड़ी थी, आज फिर उसी एकजुटता की जरूरत है। वरना यह पागल भीड़ आज शाहरुख के पीछे है, कल आपके पीछे होगी। यह वही भीड़ है, जिसने पहलू खान और अखलाक को मारा तो इंस्पेक्टर सुबोध को भी नहीं छोड़ा। इस बंटवारे और घृणा अभियान से बड़ा खतरा दूसरा कोई नहीं है।
अगर यह जारी रहा तो फिर कोई विवेकानंद शिकागो जाकर नहीं कह पाएगा कि मैं उस धरती से आया हूं जिसने दुनिया को उदारता और सहिष्णुता का सबक सिखाया है।
(कृष्णकांत की फेसबुक वाल से साभार)
(कृष्णकांत की फेसबुक वाल से साभार)
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